305 photos   44868 visits

Swarn Hans Harsh naishadh Kavya ka Anusheelan Seshendra Sharma

स्वर्ण हंस : शेषेन्द्र शर्मा; श्रीविद्योपासक शेषन्द्र एक स्वर्ण हंस

श्रीहर्ष नाम से भारत देश में ख्यातिप्राप्त दो व्यक्ति हैं। एक राजा
हैं। “नागानंदम्, प्रियदर्शिका रत्नावली” नामक ग्रंथों के रचयिता और
बौद्धधर्म परापाती हैं। दूसरे
स्वर्ण हंस : शेषेन्द्र शर्मा

Comments • 1
saatyaki 2 June 2019  
श्रीविद्योपासक शेषन्द्र एक स्वर्ण हंस

श्रीहर्ष नाम से भारत देश में ख्यातिप्राप्त दो व्यक्ति हैं। एक राजा
हैं। “नागानंदम्, प्रियदर्शिका रत्नावली” नामक ग्रंथों के रचयिता और
बौद्धधर्म परापाती हैं। दूसरे श्रीविद्योपासक कवि और पंडित हैं। इन्होंने
संस्कृत में नैषधीय काव्य का प्रणयन किया है। इसे "श्रृंगार नैषध” नाम से
श्रीनाथ कवि सार्वभौम ने ईसा 15 वीं शताब्दि में तेलुगु में अनुवदित किया
है। श्रीनाथ शैव हैं। लेकिन उनको शाक्तेय के संबंध में परिचय नहीं है यह कह
भी नहीं सकते। परंतु श्रीहर्ष के नैषध में दमयन्ती श्रीदेवी हैं - इस
रहस्य तक तो वे पहुँच नहीं पाये। इतने हजारों वर्षों से पीछे रह गये एक
तात्त्विक रहस्य का पता एक अत्याधुनिक कवि शेषेन्द्र जी को कैसे मिला? यह
आश्चर्य उत्पन्न करनेवाली बात है। अरविंद महर्षि को सावित्री मंत्र रहस्य
का बोध हुआ। उसी को उन्होंने "सावित्री ए लेजेंड एण्ड ए सिंबल'' नामक
अंग्रेजी ग्रंथ के रूप में अवतप्ति किया। इसी प्रकार शेषेन्द्र शर्मा
द्वारा रचित ‘‘स्वर्ण हंस'' नैषध काव्य की तांत्रिक व्याख्या है। इसी
प्रकार उन्हें “षोडशी'' में त्रिजटा स्वप्न में गायत्री मंत्र का रहस्य भी
विदित हुआ। इससे यह स्पष्ट होता है कि गुंटूर शेषेन्द्र शर्मा जी एक
निगूढयोगी हैं।

शेषेन्द्र शर्मा जी और मेरे बीच 60 वर्षों का सान्निहित्य है। सब लोग
उनकी आधुनिक कविता संसार हो मुग्ध से उनकी ओर आकर्षित होते हैं, परंतु उनका
''स्वर्णहंस'' और ''षोडशी के रामायण रहस्य” पढनेवालों की संख्या कितनी है?
पढकर भी उन्हें समझ पाने वाले कितने हैं?

चिरंजीवी सात्यकीने अब स्वर्णहंसालोकन करने की प्रार्थना की। सात्यकी
महा पितृभक्ति परायण व्यक्ति हैं। इसीलिए अपने पिताजी के ग्रंथ बाहर पुनः
प्रकाशित हो रहे हैं। अजपा गायत्री, चिंतामणी मंत्र साधकों के ध्यान के परे
नहीं है। प्रधानतः श्रीविद्यिोपासक आज भी देश में बहुत हैं। कह नहीं सकते
कि उन सब ने नैषध ग्रंथ पढा है। श्रीहर्ष श्रीविद्योपासक हैं - यह रहस्य अब
श्री शेषेन्द्र शर्मा जी के द्वारा हमें प्राप्त हो रहा है।


- प्रो. मुदिगोंडा शिवप्रसाद

*****

प्रकाशकीय

समसामयिक भारतीय और विश्व साहित्य के वरेण्य विद्वान कवि शेषेन्द्र
शर्मा के अत्यंत महत्वपूर्ण दार्शनिक शोध ग्रंथ हैं “षोडशी-रामायण के
रहस्य” और “स्वर्णहंस" - श्रीहर्ष के नैषध काव्य का अनुशीलन। “स्वर्णहंस”
का हिन्दी अनुवाद 1996 में प्रथम बार और “षोडशी : रामायण के रहस्य” का
हिन्दी अनुवाद प्रथम बार 2006 में प्रकाशित हुए हैं।

दुर्भाग्यवश ये दोनों प्रथम संस्करण उस समय हिन्दी जगत के संस्कृत
साहित्य के तथा दर्शन शास्त्र के विद्वानों को और विशेषज्ञों को नहीं
पहुँचाये गये। समीक्षा के लिए हिन्दी साहित्यिक पत्रिकाओं को, दैनिक समाचार
पत्रों को भी नहीं भेजे गये। फल स्वरूप लगभग दो-ढाई दशक पहले, हिन्दी
अनुवाद प्रकाशित होकर भी न हुए जैसे छिपे पड़े रहे। ‘षोडशी-रामायण के
रहस्य’ संशोधित द्वितीय संस्करण और स्वर्णहंस संशोधित द्वितीय संस्करण,
शेषेन्द्र का परिचय और इन ग्रंथों के सक्षम परिचय इत्यादि के साथ अब हिन्दी
साहित्य जगत के समक्ष हैं। इस अत्यंत कठिन कार्य को शेषेन्द्र के पुत्र
सात्यकि ने अपनी भुजाओं पर लेकर विद्वानों के विशेष सहयोग से संपूर्ण करने
में ठोस सफलता प्राप्त की है।

“षोडशी रामायण के रहस्य” में शेषेन्द्र जी ने वेद ऋषि वाल्मीकि के हृदय
का अनावरण किया है। अनगिनत युगों से जड़े जमाई धारणाओं के विरुद्ध विद्रोह
है यह रचना ! उनसे पूर्णतः हट कर है। इस दृष्टि से यह निस्संदेह एक
क्रांतिकारी दार्शनिक रचना है। शेषेन्द्र जी का दृढ़ निश्यच है कि अत्यंत
मनलुभावनी कविता में राम कथा कहते हुए उसके हृदय में वाल्मीकि ने कुण्डलिनी
योग को रहस्य रूप से छुपाया है। ताकि कविता सेवन करने के मोह में
जाने-अनजाने ही पाठक साधक बन जायें तथा कुण्डलिनी योग का असीम लाभ पायें।
इसी परिवेश में शेषेन्द्र जी "सुंदरकाण्ड कुण्डलिनी योग है'', “त्रिजटा
स्वप्न गायत्री मंत्र ही है'' इत्यादि दृढ़ निश्चयों को स्मृति और वेद के
आधार पर सिद्ध करते हैं।

वाल्मीकि से कालिदास पर्यन्त समस्त संस्कृत साहित्य ध्वनि प्रधान है।
महाकवि शेषेन्द्र का दृढ विश्वास है कि संस्कृत नैषधान्तर्गत ध्वनि को 15
वीं शती के महाकवि श्रीनाथ ने तेलुगु अनुवाद में छोड़ दिया है। इस से
तेलुगु भाषियों तक जो संदेश पहुँच नहीं सका उसे महाकवि शेषेन्द्र शर्मा ने
अपने अनुशीलन से “स्वर्ण हंस” द्वारा संपन्न किया है। स्वर्णहंस ने एक
महत्वपूर्ण रचना के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की है। यह अंग्रेजी में भी
“द गोल्डन स्वान'' के रूप में अनूदित है।

श्रीहर्ष का नैषध “विद्वदौषध'' कैसे बना है? - ध्वनि मंथन के कारण। 800
वर्षों से छिपे महारहस्य था - दमयंती श्रीमहात्रिपुरसुंदरी ही है। इसी का
विवेचन शेषेन्द्र ने इस रचना में किया है और आविष्कार भी।

शेषेन्द्र ने स्पष्ट किया है कि श्रीहर्ष श्रीविद्योपासक हैं। व्यास के
भारतांतर्गत नल-दमयंती वृत्त को तरास कर मंत्रयोग और वेदांत रहस्यों को
श्रीहर्ष ने उसमें निक्षिप्त किया है और आश्चर्यजनक रीति से अपने विवेचन से
आविष्कृत भी किया है।

“षोडशी” में रामायणांतर्गत सुंदरकाण्ड के श्लोंकों में छिपे कुण्डलिनी
योग परक रहस्य को खोल कर सीता को पराशक्ति के रूप में निरूपित करनेवाले भी
श्री शेषेन्द्र जी ही हैं। उन्होंने ही नैषध के हंस को जीवात्मा, परमात्मा
और अजपा गायत्री के प्रतीक के रूप में विश्लेषित कर दमयंती को
श्रीमहात्रिपुरसुंदरी ही निरूपित किया है।

शेषेन्द्र जी की “षोडशी” के अंतर्गत “वाल्मीकि” के शब्द और वाल्मीकि की
विचित्रताएँ एवं “स्वर्णहंस” का ध्वनि मंथन एक ही पथ पर चलनेवाली स्तरीय
अभिव्यक्तियाँ हैं। कविता का अनुशीलन एवं कवित्व सिद्धांत के विषय में
शेषेन्द्र जी का अध्ययन और उनकी सोच इस ग्रंथ में हर जगह परिव्याप्त है।
आचार्य शिव प्रसाद कहते है की जिस प्रकार श्री अरविंद ने सावित्री मंत्र को
मथ कर “सावित्री: ए लेजेंड एण्ड ए सिंबल” ग्रंथ की रचना की है उसी प्रकार
शेषेन्द्र ने अजपा गायत्री, चिंतामणि तिस्करिणी मंत्र रहस्यों का दर्शन कर
“स्वर्णहंस” का सृजन किया है।

आशा है विद्वान, अनुसंधाता और साहित्य के प्रशंसक अवश्य इसका स्वागत करेंगे।

- डॉ. बी. वाणी

------------

ebook : kinige.com/book/Swarn+Hans

Seshendra Ekagr :archive.org/details/saatyaki_gmail_201901

Seshendra : Visionary Poet of the Millennium

seshendrasharma.weebly.com
Send message Back You can't send an empty message! HTML code is not allowed. Message was not send for security reasons. Please contact us. Mesajul nu a fost trimis din motive de posibil spam. Va rugam sa ne contactati prin email pe adresa office@sunphoto.ro Message not sent, possible spam. There was a problem while sending the message, please try again. Message sent.