गुंटुर शेषेन्द्र शर्मा द्वारा विरचित ‘षोडशी’ भारत के विमर्शात्मक साहित्य को वैश्विक वाङमय में स्थापित करने वाला अत्युत्तम ग्रंथ है । ‘षोडशी’ नाम स्वयं महामंत्र से जुड़ा हुआ है । इस नाम को देखकर ही कहा जा सकता है कि यह एक आध्यात्मिक उद्बोधनात्मक ग्रंथ है । वाल्मीकि रामायण के मर्म को आत्मसात करने के लिए कितना अधिक शास्त्रीय-ज्ञान की आवश्यकता है, यह इस ग्रंथ को पढ़ने से ही समझ में आता है । इतना ही नहीं वाल्मीकि रामायण की व्याख्या करने के लिए वैदिक वाङमय की कितनी गहरायी से जनकारी होनी चाहिए, यह सब इस ग्रंथ को देख कर समझा जा सकता है । इसीलिए तो शेषेन्द्र शर्मा के सामर्थ्य, गहन परीक्षण-दृष्टि एवं पांडित्यपूर्ण ज्ञान की प्रशंसा स्वयं कविसम्राट विश्वनाथ सत्यनारायण भी करते हैं, जो कि आप में अनुपम विषय है ।
कथा-संदर्भ, चरित्रों की मनोस्थिति, तत्कालीन समय, शास्त्रीय-ज्ञान, लौकिक-ज्ञान, भाषा पर पूर्ण अधिकार आदि की जानकारी के बिना वाल्मीकि रामायण के मर्म को समझ पाना कठिन कार्य है, कह कर बहुत ही स्पष्ट शब्दों में शेषेन्द्र शर्मा ने वाल्मीकि रामायण के महत्व को उद्घाटित किया है । इस संदर्भ में उनकी नेत्रातुरः विषयक परिचर्चा विशेष उल्लेखनीय है । इसी प्रकार सुंदरकांड नाम की विशिष्टता, कुंडलिनी योग, त्रिजटा स्वप्न में अभिवर्णित गायत्री मंत्र की महिमा, महाभारत को रामायण का प्रतिरूप मानना – इस प्रकार इस ग्रंथ में ऐसे कई विमर्शात्मक निबंध हैं जिनकी ओर अन्य लोगों का ध्यान नहीं गया है । वास्तव में यह भारतीय साहित्य का अपना सत्कर्म ही है कि उसे षोडशी जैसा अद्भत ग्रंथ मिला है ।
***
मानवजाति के लिए परमौषधि हैं ‘वाल्मीकि रामायण’
रामायण महान ग्रंथ है । रामायण को पाठ्यांश में रूप में बच्चों को पढ़ाया जाता है । वयस्क लोग सीता-राम की जोड़ी को एक आदर्श दम्पत्ति के रूप में पूजते हैं । जहाँ तक पारायण की बात है, कहने की जरूरत ही नहीं, यह इसका पारायण असंख्य रूप से किया जाता है । क्या महर्षि वाल्मीकि रामायण को केवल एक सरल कथा के रूप में कह कर चुप रह गये थे ? नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है । ये विचार हैं शेषेन्द्र शर्मा के ।
शेषेन्द्र शर्मा कहते हैं, वाल्मीकि के रामायण के गूढ़ अर्थ को आत्मसात करने के लिए शास्त्रीय-ज्ञान की आवश्यकता है । इसमें रहस्य रूप में छुपे ऋषि के मंतव्य को शास्त्रीय-ज्ञान के माध्यम से ही हासिल किया जा सकता है और यह ज्ञान सभी को आसानी से नहीं मिल पाता है । पर वे यह भी कहते हैं, ‘शास्त्र केवल पंडितों के पास ही होता है ऐसा मानना कुछ स्वार्थी पंडितों द्वारा प्रचारित शडयंत्र या साजिस है ।’ साहित्य और शास्त्र के प्रति इतनी स्पष्ट, ईमानदार एवं लोकतांत्रिक दृष्टि रखने वाले कवि एवं चिंतक शेषेन्द्र शर्मा ने रामायण में वाल्मीकि द्वारा गूढ़ रूप में व्यक्त किये गये रहस्यों को उद्घाटित कर जनमानस तक पहुँचाया है । शेषेन्द्र शर्मा कहते हैं अनुष्टप छंद में विरचित वाल्मीकि रामायण काव्य-औषधि पर चड़ाये गये मधु के समान है । यह ग्रंथ वेदों का रूपांतर है और महाभारत से पहले रचा गया अद्भुत ग्रंथ है । इस पुस्तक में शेषेन्द्र शर्मा की अंतर्मुखी-दृष्टि और परीक्षण-कौशल दोनो का परिचय स्पष्ट रूप से मिलता है । इतना ही नहीं, शेषेन्द्र शर्मा की प्रतिभा एवं पांडित्य की झलक इस पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर नज़र आती है ।
‘ऋतुघोष’ जैसे श्रेष्ठ कविता संग्रह में अभिव्यक्त शेषेन्द्र शर्मा काव्य-प्रतिभा और ‘मंडे सूर्युडु’ जैसे श्रेष्ठ गद्य-पुस्तक में प्रस्तुत उनके वैदिक-वाङमय के ज्ञान की जानकारी का परिचय वर्तमान समय की युवापीढ़ी को इस ग्रंथ के माध्यम से प्राप्त हो सकता है ।
Two Great Peaks in the world literary criticism and research
Shodasi: Secrets of The Ramayana and Swarnahamsa Harshanaishada from the mighty pen of the great Telugu poet, Gunturu Seshendra Sharma are considered to be the two great peaks in the world literary criticism and research. This is a truth most contemporary Telugu writers and readers aren’t aware of. The way Seshendra could discover Kundalini Yoga, Gayathri Mantra in Shodasi, he could discern the treasure trove of mantra yoga, Sri Mahatripurasundari, Chintamani mantra in Swarnahamsa.
At a time when our universities which are mere Degrees production Units, churn out “solid waste” in the name of research; Seshendra even while attending to his job as a Municipal Commissioner created research oriented critical volumes like a sage.
Though Shodasi was published in 1967 and Swarnahamsa in 1968; Swarnahamsa was created by him much before Shodasi was conceived. The concepts that Srinatha, Nannayya and Mallanatha, the Telugu Classical poets couldn’t decipher,
Seshendra could. He humbly submits that he is most fortunate that the triumvirate had left behind some pertinent concepts only to be discovered by him at a later stage.
These two great kavyas were serialised under the editorship of late Neelamraju Venkata Seshaiah in Andhra Prabha Daily, Sunday Literary Supplements from 1963 to 1967 and Seshendra’s poems and non-fiction were published in the book forms (6) only after they appeared in serial form in Andhra Prabha.
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गुंटुर शेषेन्द्र शर्मा द्वारा विरचित ‘षोडशी’ भारत के विमर्शात्मक
साहित्य को वैश्विक वाङमय में स्थापित करने वाला अत्युत्तम ग्रंथ है ।
‘षोडशी’ नाम स्वयं महामंत्र से जुड़ा हुआ है । इस नाम को देखकर ही कहा जा
सकता है कि यह एक आध्यात्मिक उद्बोधनात्मक ग्रंथ है । वाल्मीकि रामायण के
मर्म को आत्मसात करने के लिए कितना अधिक शास्त्रीय-ज्ञान की आवश्यकता है,
यह इस ग्रंथ को पढ़ने से ही समझ में आता है । इतना ही नहीं वाल्मीकि रामायण
की व्याख्या करने के लिए वैदिक वाङमय की कितनी गहरायी से जनकारी होनी
चाहिए, यह सब इस ग्रंथ को देख कर समझा जा सकता है । इसीलिए तो शेषेन्द्र
शर्मा के सामर्थ्य, गहन परीक्षण-दृष्टि एवं पांडित्यपूर्ण ज्ञान की प्रशंसा
स्वयं कविसम्राट विश्वनाथ सत्यनारायण भी करते हैं, जो कि आप में अनुपम
विषय है ।
कथा-संदर्भ, चरित्रों की मनोस्थिति, तत्कालीन समय, शास्त्रीय-ज्ञान,
लौकिक-ज्ञान, भाषा पर पूर्ण अधिकार आदि की जानकारी के बिना वाल्मीकि रामायण
के मर्म को समझ पाना कठिन कार्य है, कह कर बहुत ही स्पष्ट शब्दों में
शेषेन्द्र शर्मा ने वाल्मीकि रामायण के महत्व को उद्घाटित किया है । इस
संदर्भ में उनकी नेत्रातुरः विषयक परिचर्चा विशेष उल्लेखनीय है । इसी
प्रकार सुंदरकांड नाम की विशिष्टता, कुंडलिनी योग, त्रिजटा स्वप्न में
अभिवर्णित गायत्री मंत्र की महिमा, महाभारत को रामायण का प्रतिरूप मानना –
इस प्रकार इस ग्रंथ में ऐसे कई विमर्शात्मक निबंध हैं जिनकी ओर अन्य लोगों
का ध्यान नहीं गया है । वास्तव में यह भारतीय साहित्य का अपना सत्कर्म ही
है कि उसे षोडशी जैसा अद्भत ग्रंथ मिला है ।
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मानवजाति के लिए परमौषधि हैं ‘वाल्मीकि रामायण’
रामायण महान ग्रंथ है । रामायण को पाठ्यांश में रूप में बच्चों को
पढ़ाया जाता है । वयस्क लोग सीता-राम की जोड़ी को एक आदर्श दम्पत्ति के रूप
में पूजते हैं । जहाँ तक पारायण की बात है, कहने की जरूरत ही नहीं, यह
इसका पारायण असंख्य रूप से किया जाता है । क्या महर्षि वाल्मीकि रामायण को
केवल एक सरल कथा के रूप में कह कर चुप रह गये थे ? नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं
है । ये विचार हैं शेषेन्द्र शर्मा के ।
शेषेन्द्र शर्मा कहते हैं, वाल्मीकि के रामायण के गूढ़ अर्थ को आत्मसात
करने के लिए शास्त्रीय-ज्ञान की आवश्यकता है । इसमें रहस्य रूप में छुपे
ऋषि के मंतव्य को शास्त्रीय-ज्ञान के माध्यम से ही हासिल किया जा सकता है
और यह ज्ञान सभी को आसानी से नहीं मिल पाता है । पर वे यह भी कहते हैं,
‘शास्त्र केवल पंडितों के पास ही होता है ऐसा मानना कुछ स्वार्थी पंडितों
द्वारा प्रचारित शडयंत्र या साजिस है ।’ साहित्य और शास्त्र के प्रति इतनी
स्पष्ट, ईमानदार एवं लोकतांत्रिक दृष्टि रखने वाले कवि एवं चिंतक शेषेन्द्र
शर्मा ने रामायण में वाल्मीकि द्वारा गूढ़ रूप में व्यक्त किये गये
रहस्यों को उद्घाटित कर जनमानस तक पहुँचाया है । शेषेन्द्र शर्मा कहते हैं
अनुष्टप छंद में विरचित वाल्मीकि रामायण काव्य-औषधि पर चड़ाये गये मधु के
समान है । यह ग्रंथ वेदों का रूपांतर है और महाभारत से पहले रचा गया अद्भुत
ग्रंथ है । इस पुस्तक में शेषेन्द्र शर्मा की अंतर्मुखी-दृष्टि और
परीक्षण-कौशल दोनो का परिचय स्पष्ट रूप से मिलता है । इतना ही नहीं,
शेषेन्द्र शर्मा की प्रतिभा एवं पांडित्य की झलक इस पुस्तक के प्रत्येक
पृष्ठ पर नज़र आती है ।
‘ऋतुघोष’ जैसे श्रेष्ठ कविता संग्रह में अभिव्यक्त शेषेन्द्र शर्मा
काव्य-प्रतिभा और ‘मंडे सूर्युडु’ जैसे श्रेष्ठ गद्य-पुस्तक में प्रस्तुत
उनके वैदिक-वाङमय के ज्ञान की जानकारी का परिचय वर्तमान समय की युवापीढ़ी
को इस ग्रंथ के माध्यम से प्राप्त हो सकता है ।
eBook : kinige.com/book/Shodasi+Ramayan+Ke+Rahasy
Seshendra - Visionary Poet of the Millennium:
seshendrasharma.weebly.com/
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Two Great Peaks in the world literary criticism and research
Shodasi: Secrets of The Ramayana and Swarnahamsa Harshanaishada from
the mighty pen of the great Telugu poet, Gunturu Seshendra Sharma are
considered to be the two great peaks in the world literary criticism and
research. This is a truth most contemporary Telugu writers and readers
aren’t aware of. The way Seshendra could discover Kundalini Yoga,
Gayathri Mantra in Shodasi, he could discern the treasure trove of
mantra yoga, Sri Mahatripurasundari, Chintamani mantra in Swarnahamsa.
At a time when our universities which are mere Degrees production
Units, churn out “solid waste” in the name of research; Seshendra even
while attending to his job as a Municipal Commissioner created research
oriented critical volumes like a sage.
Though Shodasi was published in 1967 and Swarnahamsa in 1968;
Swarnahamsa was created by him much before Shodasi was conceived. The
concepts that Srinatha, Nannayya and Mallanatha, the Telugu Classical
poets couldn’t decipher,
Seshendra could. He humbly submits that he is most fortunate that the
triumvirate had left behind some pertinent concepts only to be
discovered by him at a later stage.
These two great kavyas were serialised under the editorship of late
Neelamraju Venkata Seshaiah in Andhra Prabha Daily, Sunday Literary
Supplements from 1963 to 1967 and Seshendra’s poems and non-fiction were
published in the book forms (6) only after they appeared in serial form
in Andhra Prabha.